चम्पू काव्य की परिभाषा, इतिहास एवं उदाहरण


आज के इस आर्टिकल में हम आपको चम्पू काव्य के बारे में बताने जा रहे हैं, यह श्रव्य काव्य का ही एक भाग होता है, इस लेख में आप चम्पू काव्य की परिभाषा एवं चम्पू काव्य के इतिहास के बारे में विस्तार पूर्वक पढ़ेगें तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

चम्पू काव्य की परिभाषा

चम्पू काव्य हिंदी व्याकरण के गद्य काव्य एवं पद्य काव्य का मिश्रण ही चम्पू काव्य कहलाता है। चम्पू काव्य की बात करे तो यह श्रव्य काव्य का ही एक प्रकार होता है।

यशोधरा को हिंदी व्याकरण का चम्पू काव्य कहा जाता है क्योंकि इसमें पद्य एवं गद्य दोनो को मिलाकर प्रयोग किया गया है।

उदाहरण

यशोधरा चम्पू काव्य का उदाहरण है।

इसके अलावा गोपाल चम्पू , चम्पू भारत, आनँदवृन्दावन, नीलकण्ठ चम्पू तथा यश तिलक चम्पू काव्य के अन्य उदाहरण में से हैं।

चम्पू काव्य का इतिहास

काव्य की इस विधा का वर्णन प्राचीन साहित्य शास्त्रियों वामन, दण्डी , भामह इत्यादि के द्वारा नही किया गया है।

चम्पू काव्य का आरंभ हमे अथर्ववेद से ज्ञात होता है, चम्पू नाम के प्रकृत काव्यो की रचनाएं दसवीं सती के बाद से सुरु हुईं हैं।

दसवीं सदी के प्रारंभ की प्रमुख रचना नलचम्पू व त्रिविक्रम भट्ट है जो कि चम्पू काव्य के प्रमुख उदाहरण हैं।

हालांकि इस सब के बाद भी यह काव्य रूप अधिक प्रसिद्ध नही हो सका जिस कारण से इसको कोई विशेष मान्यता प्रदान नही हुई।

इस लेख में आपको चम्पू काव्य के बारे में जानकारी दी गई है यदि आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो इसे आगे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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